Stages Of Program Development Process Full Explain In Hindi

हेलो दोस्तों !

आज की इस  Stages Of Program Development Process Full Explain In Hindi पोस्ट में हम प्रोग्राम डेवलपमेंट की प्रोसेस के बारे में चर्चा करेंगे। की कितनी stages में किसी प्रोग्राम का डेवलपमेंट होता है। दोस्तों ये stages जो हम इस पोस्ट में बताएँगे ये सभी प्रोग्रामिंग के लिए एक ही होती है। 

इस पोस्ट के मुख्य विषय :-

  • stages of program development . 
  • इन stages का यूज़ क्यों किया जाता है ?

1. stages of program development

तो दोस्तों सबसे पहले हम program development की stages के बारे में जान लेते है की कौन -कौन सी stages का यूज़ एक प्रोग्राम को डेवेलप करने में होता है। 

दोस्तों जो stages हम बता रहे है आप उन stages का यूज़ किसी भी प्रोग्रामिंग के प्रोग्राम को बनाने के लिए कर सकते है। क्योकि लगभग सभी प्रोग्रामिंग के प्रोग्राम एक ही तरीके से लिखे और रन किये जाते है। 

निन्म stages का यूज़ प्रोग्राम को develop करने में किया जाता है :-
  • Problem Definition 
  • Program Design 
  • Program Coding 
  • Debugging or (compiling)
  • Testing  
  • Documentation 
  • Maintenance 
stages of program development process in hindi


1.Problem Definition :-

दोस्तों यह प्रोग्राम डेवलपमेंट की सबसे पहली स्टेज होती है। ये वह स्टेज होती है जिस स्टेज में हम यह decision लेते है की हमें कौन सी प्रॉब्लम को सॉल्व करना है। वह कैसी प्रॉब्लम है इसे हम किस प्रकार सॉल्व करेंगे। इस प्रकार का पूरा एक डॉक्यूमेंट तैयार किया जाता है जिसमे उस प्रॉब्लम से रिलेटेड सारी जानकारी होती है। 

हम इसे एक उदाहरण से समझते है। जैसे मान लीजिये की हमें एक स्टूडेंट मैनेजमेंट सिस्टम बनाना है। तो हम पहले स्टूडेंट देखेंगे की किंतने स्टूडेंट है और स्टूडेंट के क्या -क्या रिकॉर्ड हो सकते है। ऐसी सारी जानकारी हम problem definition stage में परिभाषित करते और सारी इनफार्मेशन को इकठ्ठा करते है। 

2.Program Design :-

दोस्तों प्रॉब्लम डेफिनिशन के बाद प्रॉब्लम डिज़ाइन की स्टेज आती है। इस स्टेज का प्रमुख कार्य प्रॉब्लम को कैसे सॉल्व करना है प्रॉब्लम को सॉल्व करने में किन-किन चीज़ो की जरुरत होती है। इन सभी की डिज़ाइन बनाना होता है। ताकि आगे की प्रोसेस को पूरा किया जा सके। इस स्टेज में उन सभी चीज़ो को  डिज़ाइन बनाई जाती है जिनका यूज़ प्रोग्राम को या प्रॉब्लम को सॉल्व करने में यूज़ होना है। 

हम उसी स्टूडेंट मैनेजमेंट के उदाहरण से इसे भी समझते है। हमें स्टूडेंट मैनेजमेंट सिस्टम में किन -किन चीज़ो की जरुरत होगी। और कैसे हम स्टूडेंट मैनेजमेंट सिस्टम को बनाएंगे। किस concept का यूज़ इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने में यूज़ करेंगे। इन सभी कार्यो को प्रोग्राम डिज़ाइन स्टेज में रखा जाता है। 

3.Program Coding :-

दोस्तों प्रोग्राम डिज़ाइन के बाद प्रोग्राम कोडिंग की स्टेज आती है। और आप इसे आसानी से जान गए होंगे की इस स्टेज में क्या करना है। इस पोस्ट में हम उसी डिज़ाइन के अनुसार कोडिंग करते है जो हमने इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए बनाई है। 

इस स्टेज में हम केवल प्रोग्राम की कोडिंग उस प्रॉब्लम की डिज़ाइन के अनुसार करते जाते है। और जब तक पूरी डिज़ाइन की कोडिंग नहीं हो जाती तब तक हम प्रोग्राम की कोडिंग करते है। यह सबसे ज्यादा टाइम लगाने वाली स्टेज होती है इसमें सबसे ज्यादा समय लगता है। क्योकि पुरे प्रोग्राम की कोडिंग करनी पड़ती है। 

4.Debugging or (compiling) :-

दोस्तों प्रोग्राम कोडिंग के बाद प्रोग्राम की डिबगिंग या compiling की स्टेज आती है इस स्टेज में हम प्रोग्राम को debug या compile करते है। इस प्रोसेस में प्रोग्राम को मशीन कोड में बदला जाता है और उस प्रोग्राम की एक executable फाइल बनाई जाती है। जो की हमारे प्रोग्राम के द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार वर्क करती है। 

लेकिन इसकी पूरी गरंटी नहीं होती है की यह प्रोग्राम सही से कार्य करेगा। इसलिए इसके बाद की स्टेजेस में इस executable फाइल को टेस्टिंग की जाती है जो अभी हम आगे पढ़ेंगे। डिबगिंग की प्रोसेस बस इतनी ही होती है। केवल प्रोग्राम को executable फाइल या सिस्टम में रन फाइल में कन्वर्ट करना होंगे योग्य बनाना। 

5.Testing :-

तो दोस्तों डिबगिंग के बाद टेस्टिंग की प्रोसेस आती है और आप इसके नाम से ही जान गए होंगे की इस स्टेज में क्या किया जाता है। तो अपने सही समझा इस स्टेज में हम प्रोग्राम की टेस्टिंग करते है। जो प्रोग्राम हमने बनाया है। टेस्टिंग एक ऐसी प्रोसेस है जिससे यह पता चलता है की आपके द्वारा बनाया गया प्रोग्राम कितना सक्षम है। उस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए जिस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए अपने इस प्रोग्राम को बनाया है। 

टेस्टिंग की प्रोसेस प्रोग्राम को रन करके उससे सारे कार्य कराये जाते है और देखा जाता है की किस प्रकार आपका प्रोग्राम उन कार्यो को कर रहा है जिन कार्यों को अपने कराने के लिए इस प्रोग्राम को बनाया है। आपका प्रोग्राम कितना समय ले रहा। सही से कार्य कर रहा है या नहीं इन सभी चीज़ो को टेस्टिंग स्टेज में देखा जाता है। 

6.Documentation :-

दोस्तों टेस्टिंग स्टेज के बाद डॉक्यूमेंटेशन का स्टेज आता है। यह स्टेज वैसे तो प्रोग्राम के वर्क के लिए उतना जरुरी नहीं होताहै। मगर यह स्टेज एक प्रोग्रामर के लिए बहुत फायदेमंद होती है। क्योकि इस स्टेज में प्रोग्राम को पूरी तरह से डॉक्यूमेंट कर दिया जाता है। जिससे प्रोग्रामर प्रोग्राम को भविष्य में आसानी से समझ पता है। 

डॉक्यूमेंट करने का मतलब है की पुरे प्रोग्राम में कमेंट करके या एक प्रोजेक्ट फाइल बनाकर पुरे प्रोग्राम को डॉक्यूमेंट किया जाता है की प्रोग्राम में कौन सा फंक्शन क्या कर रहा है। किस पार्ट का क्या यूज़ है कोई स्टेटमेंट क्यों लिखा गया है यह सभी बाते डॉक्यूमेंट के अंदर आती है। इसमें प्रोग्राम का पूरा सार लिखा जाता है की कौन सा फंक्शन किस कार्य को करेगा। 

क्योकि प्रोग्राम काफी बड़े और जटिल होते है जोकि भविष्य में कभी कोई प्रॉब्लम होने पर इनको आसानी से समझा जा सके इसलिए यह स्टेज महत्वपूर्ण होती है। इन डॉक्यूमेंट की मदद से कोई दूसरा प्रोग्रामर भी आपके द्वारा लिखे प्रोग्राम को आसानी से समझ जाता है। 

7.Maintenance :-

यह प्रोग्राम डेवलपमेंट की सबसे लास्ट स्टेज मानी जाती है। इस स्टेज का भी उतना यूज़ नहीं होता है मगर यह भी अपने आप में एक important स्टेज होती है। इस स्टेज में प्रोग्राम या एप्लीकेशन जो अपने बनाया है उसका मेंटिनेंस करना होता है। क्योकि समय के साथ प्रोग्राम में कुछ बदलाव की जरुरत होती है और उसी बदलाव को हम मेंटिनेंस की स्टेज में रखते है। 

प्रोग्राम की देखरेख करना की प्रोग्राम सही से कार्य कर रहा है या नहीं यह प्रोसेस हमेशा चलती रहती है। जब तक प्रोग्राम चलता है या आपके प्रोग्राम का यूज़ होता है। प्रोग्राम में कोई भी प्रॉब्लम आने पर प्रोग्राम मेंटेनेंस डिपार्टमेंट को प्रोग्राम का मेंटिनेंस करना पड़ता है। प्रोग्राम की देखरेख और प्रोग्राम में आई कोई भी खराबी को मेंटेनेंस डिपार्टमेंट संभालता है। 

2. इन stages का यूज़ क्यों किया जाता है :-

तो दोस्तों अब आपका शायद यह सवाल हो सकता है की इन stages का हम क्यों यूज़ करते है ? तो चलिए अब इसी के बारे में जान लेते है। 

दोस्तों अक्सर आप छोटे -छोटे प्रोग्राम को बिना किसी स्टेज को फॉलो किये बनाते होंगे। और आपका प्रोग्राम बिना इन स्टेजेस को फॉलो किये भी आसानी से compile और रन हो जाता है। इसका कारण है की आपका प्रोग्राम काफी छोटा है और केवल एक कार्य को करने के लिए बनाया गया है। 

दोस्तों जब हमें बड़े-बड़े सॉफ्टवेयर या एप्लीकेशन बनाने होते है तब हम इन स्टेजेस का यूज़ करते है। क्योकि सॉफ्टवेयर काफी बड़े होते है इसलिए इन्हे हैंडल करने के लिए पूरी प्लानिंग की जरुरत होती है। किसी सॉफ्टवेयर को बनाने के लिए पूरी एक टीम होती है जो उस सॉफ्टवेयर को बनाने के लिए हर स्टेज में काम करते है। 

इतने बड़े प्रोग्राम को बिना किसी प्लैनिंग के बनाना बहुत मुश्किल काम होता है। कोई भी कंपनी बिना प्लैनिंग के सॉफ्टवेयर नहीं बनती है। क्योकि यह बहुत रिस्की काम होता है बिना प्लैनिंग किये सॉफ्टवेयर बनाने में बहुत सारी प्रॉब्लम आ सकती  है। इसलिए हमें बड़े प्रोग्राम्स बनाने से पहले उनकी प्लैनिंग कर लेनी चाहिए। 

प्रोग्राम को बनाने की पूरी प्लैनिंग इन्हीं stages से मिलकर बनती है। छोटे प्रोग्राम बनाने में इनका यूज़ करना उतना जरुरी नहीं होता है लेकिन बड़े प्रोग्राम बनाने में इनका यूज़ बहुत जरुरी होता है। 

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Author :-  तो दोस्तों हमारी यह पोस्ट अब ख़त्म होती है। हम आशा करते है की हमारी यह Stages Of Program Development Process Full Explain In Hindi पोस्ट आपको जरूर पसंद आई होगी। और आप प्रोग्राम   डेवलपमेंट की इन स्टेजेस को अच्छी तरह समझ गए होंगे। तो दोस्तों अगर आपको लगता है की इस पोस्ट में कुछ कमी है तो हमें कमेंट जरूर बताये। हम उस कमी को दूर करने का प्रयास करेंगे। धन्यवाद !

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